बुधवार, 22 अगस्त 2012

सुबीर संवाद सेवा --

सुबीर संवाद सेवा--हिदी जगत के लोकप्रिय उक्त ब्लॉग पर ईद के अवसर पर आयोजित मुशायरे में मेरी गज़ल भी पढें ! ब्लॉग लिंक पर क्लिक करें !

शुक्रवार, 29 जून 2012


मेरी मोहब्बत  को समझ लेना, कहीं ना तमशा बना देना..
मैं घुंगरू बांध के नाचूँगा,तू बस महफ़िल सजा देना,
मैं तेरी आंख मैं रहता हूँ,तुझे एक बात ही कहता हूँ..
खारा पानी समझ के जूं ,मुझे.ना आँखों से बहा देना..
मेरे शहर के पत्थरों से ,तो हूँ बाकिफ में बहुत अच्छा,
बुला के शहर बेगाने में ,कहीं ना पत्थर बरस्बा देना..
लिखा तकदीर ए आशिक में,सच है यूँ चोट खाना भी.
मेहरबानी जो तेरी हो तो .तू बस मरहम लगा देना...
जमाना झूठ कहता है के,तू पत्थर दिल का मालिक है..
मेरा विश्वास जे पक्का है,बस कहीं तू ना झुटला देना..
तेरी हर बात पे सहमत हूँ.तेरी उदासी तेरी राहतों में शामिल हूँ.
बांध के पट्टी तू आँखों पे , निशाना अपना भी आजमा लेना.
अपने घर की छत के तारों से,जिकर करना तू बस इतना..
कहंगे सब वो तेरे बारे में ही,उन्हें बस नाम तू मेरा बता देना.
मेरी मोहब्बत को समझ लेना कहीं तमाशा ना बना देना.
मैं घुंगरू बांध के नाचूँगा,तू बस महफ़िल सजा देना,
लेखक:- अश्वनी भारद्वाज(९८१६६२७५५४)

सोमवार, 11 जून 2012

तेरे खुआब

मुझे भी तेरे खुआब  देखने  का शौंक  है ..
कहदो न अपनी यादों से मुझे सोने दिया करें ..लेखक अश्वनी भारद्वाज 

शहर

जब भी नम नम सी हवाएं चलें तेरे शहर में ,
समझ लेना के आज कल अश्वनी तेरे ही शहर मैं है. 
:-लेखक अश्वनी भरद्वाज

वक़्त

इससे बुरी क्या होगी गरीब की दास्ताँ-ए-इश्क 
मुश्किल से मिला है वक़्त मुलाक़ात का और जेब मेरी खाली है. 
लेखक :-अश्वनी भरद्वाज

मैं प्यार का रिश्ता नाज़ुक सा

मैं तेरी आँख में रहता हूँ ,बहाना सोच कर मुझको ,
गिरे इक्क बार जो आँखों से, तो बो मिटटी में मिल जाएँ.
मैं प्यार का रिश्ता नाज़ुक सा ,निभाना सोच कर मुझको ,
इतनी राह न लम्बी हो,के फूल कबर पे खिल जाएँ, 
लेखनी:अश्वनी भरद्वाज

बर्बादी

बदनाम न हो जाये तेरा नाम मैं चुप ही रहता हूँ ,
यूँ तो लोग रोज मुझसे मेरी बर्बादी का सबब पूछते हैं. 
लेखक:अश्वनी भारद्वाज 

दीवानगी

तेरे शहर की हर दिवार को पता है मेरी दीवानगी का..
अक्सर लग्ग के गले मैंने उनके आंसू बहाए हैं...लिखारी:अश्वनी भारद्वाज

हालात

उसे लगा के छोड़ जाऊंगी मैं तो उजड़ जायेगा अश्वनी ,
मुझे लगता है के तेरे जाने से हालात मेरे बेहतर हैं ..लेखनी अश्वनी भारद्वाज

Gunah...

मैंने मेरे ही लोगों से गुनाह जे एक जरुर किया है...
लेके नाम किसी और का खुद को मशहूर किया है..Ashwani Bhardwaj

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

कभी हम गिरते गए कभी सँभलते गए--गज़ल

कभी हम गिरते गए कभी सँभलते गए
रास्ते हयात खुद यों फ़िर संवरते गए

पशेमां भी रहे हैरां भी हम रहे
दिन जिन्दगी के यों मिले जुले गुजरते गए

कभी अपनों कभी गैरों के भी रहे
दिल साफ़ हम थे तो अच्छे दिन निकलते गए

खुद ही हदें जो थीं कभी तय की हमने
बाकायदा उन तयशुदा हदों पे हम तो चलते गए

नाकाम और काबिल हम न ये जाने
दुआ से उस खुदा की रास्ते मिलते गए         !!
                                                                        --अश्विनी रमेश

(आज ही यह गज़ल मैंने फेसबुक नोट के माध्यम से फेसबुक पर भी इससे पहले प्रकाशित की है--अश्विनी रमेश )

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

जब तुम पर उदासी छाएगी फ़िर याद कर लेना--गज़ल

जब तुम पर उदासी छाएगी फ़िर याद कर लेना
शेरों से हमारे फ़िर कभी दिल शाद कर लेना

मन की तितलियाँ जब फड़फड़ातीं जाएंगीं
यादों के घरोंदे में कभी आबाद कर लेना

साया भी हमारा साथ तेरा इस कदर देगा
दिलकश ये अह्सासे रूह बरसों भी बाद कर लेना

अहसासे रूह एक रोशनी में तुम हमें देखना
कोई नाम ना आकार दे आज़ाद कर लेना

पानी में हवा में आग में हर जगह हम ही हैं
जब चाहे जहाँ चाहे हमें तुम याद कर लेना !!

                                                                       --अश्विनी रमेश !

(यह गज़ल आज ही मैंने फेसबुक नोट के माध्यम से पहले फेसबुक पर सबसे पहले प्रकाशित की--अश्विनी रमेश )

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

एक सूरज से वो अबर में छुप गये--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल

एक सूरज से वो अबर में छुप गये
मैं अंजुलि में लिये जल खड़ा रह गया
जैसे आँसू निकलकर कोई आँख से
ओस की तरह मुख पे पड़ा रह गया

जाने किसने है तोड़े ये खिलते सुमन
तितलियाँ चुपके रोती हैं उद्यान में
सूख जाता तो महसूस होता नहीं
वो हरा घाव था जो हरा रह गया

साथ दे न कोई तो अकेले चलो
राह में छोड़ दे तो अकेले चलो
संग पक्षी के उड़ने की चाहत में मैं
इस धरा पर गिरा था गिरा रह गया

ये है तेरा शहर वो मेरा गाँव
है इस तरफ धूप है उस तरफ छांव
है कैसे टुकड़ों में हिरदय को बांटे कोई
कितना सहमा मैं कितना डरा रह गया !!

गुरुवार, 8 मार्च 2012

ओ पवन उनकी हथेली की छुअन लाना कभी--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल ,फरीदाबाद

                                                                 

ओ पवन उनकी हथेली की छुअन लाना कभी
आये जब होली तो मेरे मुख पे मल जाना कभी

हो सुपरिचत केश की मधु गंध से तुम भी पवन
एक मुट्ठी भर के अपने साथ ले आना कभी

टिमटिमाये बिन दीया जब जल रहा हो सामने
एक झोंके से मेरी पलकों को ढक जाना कभी

नीर नयनों से बहाकर हमने संचित कर लिये
भेद सावन बीत जाने का बता जाना कभी

करवटों से बिस्तरे पर गीत हमने लिख दिया
वो जो आँगन में मिले तो गुनगुना जाना कभी !!

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

कोलाहल ने पत्थर बहत फैंक डाले,कोई आत्मा कैसे जीवन संभाले

कोलाहल ने पत्थर बहत फैंक डाले
कोई आत्मा कैसे जीवन संभाले
स्वयम को जो उत्तम बताने चला है
वो कुछ पाप कुछ पुन्य अपने गिना ले

जो धरती से अम्बर को ही झांकते हैं
वो सागर की गहरायी क्योँ आंकते हैं
वो ग्रहों पे जीवन चले खोजने हैं
हैं जिन्होंने धरा पर सुमन रौंद डाले

जो इच्छुक थे जीवन को रंग डालने के
वो पोषक हैं रंग भेद को पालने के
महाद्वीप जिस पर धनुष इन्द्र देखा
कहा जग से केवल हैं ये मेघ काले

हैं सम्मान झूठे हैं अभिमान झूठे
हैं वरदान झूठे हैं व्याख्यान झूठे
नहीं खींच सकते कोई वो जो रेखा
तो सीता से कह दे स्वयम को संभाले !!
                                                            --गीत द्वारा -सतीश अग्रवाल फरीदाबाद  !

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

है निकट जीवन की संध्या भोर से कह दिजीये एक टुकड़ा धूप का मुट्ठी में है ले लिजीये

है निकट जीवन की संध्या भोर से कह दिजीये
एक टुकड़ा धूप का मुट्ठी में है ले लिजीये
वेदना और कष्ट ही जीवन की हैं उपलाब्धियाँ 
आत्मा के कक्ष में संचित है वितरत किजीये
रेत आँगन में बिछाकर मेघ  दुश्मन हो गए
नीर नयनों  से टपकने को हैं तुलसी दिजीये
यातना परिपक्व होकर दे रही संकेत है
हो अधर यदि मौन तो पलकों को भी ढक दिजीये

                                        -गीत द्वारा सतीश अग्रवाल  फरीदाबाद !

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

कई मोड़ जीवन में ऐसे भी आये वही घर उजाड़े जो थे कभी बसाये

कई मोड़ जीवन में ऐसे भी आये
वही घर उजाड़े जो थे कभी बसाये
धरम रखा जिंदा करम मार डाला
 वरण रखा जिंदा चरम मार डाला 

जहां शव को देखा चदाये सुमन
जहां मार्ग देखा कांटे बिछाए
चलन भी न सीखा चयन भी न जाना
मनन भी न सीखा नमन भी न जाना

रहे दुश्मनों को हँसते हमेशा
जो थे मित्र अपने बहुत ही रुलाये
हरण कर गए हम हनन कर गए हम
दफ़न कर गए हम दमन कर गए हम

कहा था के इक दिन गायेंगे मिलकर
न वो गीत सीखे न वो गीत गाये
       
                                      --गीत द्वारा सतीश अग्रवाल ,फरीदाबाद !

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

मत रुलाने की बातें करो मुस्कराने की बातें करो

मत रुलाने की बातें करो
मुस्कराने की बातें करो 

झुक गया सर बहुत झुक गया
सर उठाने की बातें करो

वक्त जैसा भी था कट गया
भूल जाने की बातें करो
आग अपनी हो या गैर की
बस बुझाने की बातें करो

गीत जब गा रहा हो 'सतीश'
गुनगुनाने की बातें करो

                           --सतीश अग्रवाल फरीदाबाद !

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

छोड़कर गाँव जब वो शहर को चला--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल

छोड़कर गाँव जब वो शहर को चला
खेत का एक टुकड़ा बुलाने लगा
जब पुजारी ही चला मंदिर छोड़कर
एक पत्थर भी आँसू बहाने लगा

भैय्या बीमार है भौजी लाचार है
एक खुशी घर में आने को तैयार है
जितने भेजे थे पैसे खतम हो गए
पत्र में जो लिखा था रुलाने लगा

हमने माना के तुम एक अफसर बने
जिसने तुमको बनाया वो खंडहर बने
जब महल की दिवारों ने धोखा दिया
झोंपड़ी का वो बचपन सताने लगा

आज लौटा तो देखा गया सब बदल
पेड़ पीपल न पाया गया वो मचल
गाँव अपना ही अपनों ने गुम कर दिया
ऐसा बदला के नक्शा डराने लगा         !!
                                            --सतीश अग्रवाल
(यह गीत एक बहुत अच्छे गीतकार सतीश अग्रवाल ने मुझे एस.एम.एस के माध्यम से फरीदाबाद से भेजा है ! सतीश अग्रवाल वह गीतकार है जिनके गीतों की गूँज ने एक समय में शिमला की वादीयों में तहलका मचा दिया था )

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

मैं अमन उपासक हूँ मेरे अधरों पर वंदन रहने दो--गीत-द्वारा एल.आर झींगटा

मैं घायल मन को मरहम हूँ
मैं तपते तन को शबनम हूँ
मैं सुमन सुवासित सरगम हूँ
नित नव उत्पीडन रहने दो !

जब धरती रक्तिम होती है,
जब माँ की ममता रोती है,
वो वेला अंतिम होती है
ये रक्त निमज्जन रहने दो !
क्योँ भटके हो तुम सत् पथ से
,क्यूँ ऐंठे हो तुम उन्मत से,
जो मात्रिचरण में कल नत थे
वो शीश नमन को रहने दो !

ये चौथी की दुल्हन का चेहरा
चित चुम्बी चुनरी और चूडा,
हर पोर पिपासा का पहरा
ये मांग सुहागन रहने दो !
मैं हिंसा का अवतार नहीं
मैं सत्ता या अधिकार नहीं,
मैं मानवता की मलयानिल
चहूँ ओर चिरंतन रहने दो !

तुम अपने गीतों के जलसे,
धो डालो धब्बे छल बल के
महकाओ सपने उज्जवल से
मन्त्रों का मंथन रहने दो !

मत उलझो वाद विवादों में
उत्कर्षविहीन विषादों में
हे 'निशात' ऋचा संवादों में
सब सत्य सनातन रहने दो !!
                                      --एल.आर. झींगटा !

रविवार, 29 जनवरी 2012

मैं अमन उपासक हूँ--गीत-द्वारा एल.आर.झींगटा

मैं अमन उपासक हूँ मेरे अधरों पे वंदन रहने दो
मैं प्रेम पपीहा हूँ मेरे गीतों में चंदन बहने दो
मैं घायल मन को मरहम हूँ
मैं तपते तन को शबनम हूँ
मैं सुमन सुवासित सरगम हूँ
नित नव उत्पीडन रहने दो...

शनिवार, 28 जनवरी 2012

मैं राहे जिन्दगी पे चलता जाता हूँ--गज़ल

मैं राहे जिन्दगी पे चलता जाता हूँ
अहसासे रूह मगर मैं करता जाता हूँ

चोटों से जिन्दगी की मैंने सीखा है
ज़ख्मों को यों तभी अपने भरता जाता हूँ

दुःख दरदों से कभी डरना कैसा है अपने
दर्दमंदों के मगर दर्द से मैं मरता जाता हूँ

इन्सा जो भी वफा की राहों पे चलते हैं
उनका मैं तो हमेशा ही सजदा करता जाता हूँ

सच की राहें बड़ी हैं आसाँ चलने को
पैगामे जिन्दगी मैं ऐसा कहता जाता हूँ       !!
                                                                         (यह गज़ल मैंने आज२८/१/२०१२ को "हिमधारा" साईट पर प्रकाशित की है,और इसका लिंक मैने इस ब्लॉग पर भी दे दिया था !अब पूरी गज़ल मैं पाठकों की सुविधा के लिए यहाँ भी दे रहा हूँ--अश्विनी रमेश )

हिमधारा: मैं राहे ज़िंदगी पे चलता जाता हूँ--गज़ल

हिमधारा: मैं राहे ज़िंदगी पे चलता जाता हूँ--गज़ल

शनिवार, 14 जनवरी 2012

जान की तरह ...

जिस्म में रहते थे कभी जान की तरह,
अब अपनें घर में हैं मेहमान की तरह !!

इंतज़ार नें महरूम रक्खा, शाम होते ही,
वो दिल अपना बढ़ा गए दुकान की तरह !!

मेरी हर बात उसनें रक्खी संभालकर,
कचहरी में दिए हुए बयान की तरह !!

बालू के ढेर में, एक सीपी मिली मुझे,
किसी बुझे-हुए दिल में अरमान की तरह !!

एक-एक पल में, सौ-सौ बार जताया,
प्यार भी किया किये एहसान की तरह !!

हमीं नें रक्खे जिनके तरकश में तीर,
वो हमीं पे तन गए कमान की तरह !!

अक्सर महफिलों में पेश करते हैं,
हमें खोलकर वो पानदान की तरह !!

हैवान
भी फरिश्तों-सी बात करनें लगा,
हम जो पेश आये एक इंसान की तरह !!

मक्खनपलोस पा गए किताबों में नाम,
हुनरमंद लापता रहे भगवान की तरह !!

भरी-पूरी दुनिया में, होते हुए 'निशात',
कुछ लोग रहे ताउम्र, श्मशान की तरह !!

रविवार, 8 जनवरी 2012

मिज़ाजे मौसम अब बदलता जा रहा है--गज़ल

मिज़ाजे मौसम अब बदलता जा रहा है
हवाओं का रुख अब बिगड़ता जा रहा है

तबीयत तुम अब तो हमारी बस न पूछो
दिले नाज़ुक अब तो बिखरता जा रहा है

कहीं दिलकश मन्ज़र तलाशे है मगर ये
दिले नादां तो बस तडपता जा रहा है

खबर कोई आखिर हमारी रखे ऐसा ये
उम्मीदे ख्याल भी संभलता जा रहा है

पशेमा होकर ही हमें जीना पड़ेगा
सकूने दिल अब तो ठहरता जा रहा है !!
                                                           --अश्विनी रमेश !
              *****
(यह गज़ल मैंने७/१/२०१२ को हिमधारा पर प्रकाशित की थी और इसका लिंक इस ब्लॉग पर भी दे दिया था ! पाठकों की सुविधा के लिये अब पूरी गज़ल यहाँ भी पोस्ट कर रहा हूँ--अश्विनी रमेश )

रविवार, 1 जनवरी 2012

नये साल का इस्तकबाल करते मेरे शेर--अश्विनी रमेश

मुबारक तुम्हे ये नया साल हो
खुशियों का ऐसा ये उपहार हो
खुशियाँ ही बिखेरे ये हर तरफ
गमों का न कोई यहां संसार हो !!





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नये साल का इस्तकबाल करते मेरे शेर-अश्विनी रमेश

नये साल की खुशी बांटेंगे हम
गमों की सब जंजीरें काटेंगे हम
जो भी आएंगे गुलशन में हमारे
खुशियाँ सबके ही संग बाँटेंगे हम !
--अश्विनी रमेश

नये साल का इस्तकबाल करते मेरे शेर-अश्विनी रमेश

नया साल मुबारक हो तुम्हे
इसकी रंगे बहार मुबारक हो तुम्हे
अंजुमन तुम्हारा खुशियों से खिले
खुशियों का इंतज़ार मुबारक हो तुम्हे !
--अश्विनी रमेश !