शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

कोलाहल ने पत्थर बहत फैंक डाले,कोई आत्मा कैसे जीवन संभाले

कोलाहल ने पत्थर बहत फैंक डाले
कोई आत्मा कैसे जीवन संभाले
स्वयम को जो उत्तम बताने चला है
वो कुछ पाप कुछ पुन्य अपने गिना ले

जो धरती से अम्बर को ही झांकते हैं
वो सागर की गहरायी क्योँ आंकते हैं
वो ग्रहों पे जीवन चले खोजने हैं
हैं जिन्होंने धरा पर सुमन रौंद डाले

जो इच्छुक थे जीवन को रंग डालने के
वो पोषक हैं रंग भेद को पालने के
महाद्वीप जिस पर धनुष इन्द्र देखा
कहा जग से केवल हैं ये मेघ काले

हैं सम्मान झूठे हैं अभिमान झूठे
हैं वरदान झूठे हैं व्याख्यान झूठे
नहीं खींच सकते कोई वो जो रेखा
तो सीता से कह दे स्वयम को संभाले !!
                                                            --गीत द्वारा -सतीश अग्रवाल फरीदाबाद  !

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