शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

कोलाहल ने पत्थर बहत फैंक डाले,कोई आत्मा कैसे जीवन संभाले

कोलाहल ने पत्थर बहत फैंक डाले
कोई आत्मा कैसे जीवन संभाले
स्वयम को जो उत्तम बताने चला है
वो कुछ पाप कुछ पुन्य अपने गिना ले

जो धरती से अम्बर को ही झांकते हैं
वो सागर की गहरायी क्योँ आंकते हैं
वो ग्रहों पे जीवन चले खोजने हैं
हैं जिन्होंने धरा पर सुमन रौंद डाले

जो इच्छुक थे जीवन को रंग डालने के
वो पोषक हैं रंग भेद को पालने के
महाद्वीप जिस पर धनुष इन्द्र देखा
कहा जग से केवल हैं ये मेघ काले

हैं सम्मान झूठे हैं अभिमान झूठे
हैं वरदान झूठे हैं व्याख्यान झूठे
नहीं खींच सकते कोई वो जो रेखा
तो सीता से कह दे स्वयम को संभाले !!
                                                            --गीत द्वारा -सतीश अग्रवाल फरीदाबाद  !

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

है निकट जीवन की संध्या भोर से कह दिजीये एक टुकड़ा धूप का मुट्ठी में है ले लिजीये

है निकट जीवन की संध्या भोर से कह दिजीये
एक टुकड़ा धूप का मुट्ठी में है ले लिजीये
वेदना और कष्ट ही जीवन की हैं उपलाब्धियाँ 
आत्मा के कक्ष में संचित है वितरत किजीये
रेत आँगन में बिछाकर मेघ  दुश्मन हो गए
नीर नयनों  से टपकने को हैं तुलसी दिजीये
यातना परिपक्व होकर दे रही संकेत है
हो अधर यदि मौन तो पलकों को भी ढक दिजीये

                                        -गीत द्वारा सतीश अग्रवाल  फरीदाबाद !

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

कई मोड़ जीवन में ऐसे भी आये वही घर उजाड़े जो थे कभी बसाये

कई मोड़ जीवन में ऐसे भी आये
वही घर उजाड़े जो थे कभी बसाये
धरम रखा जिंदा करम मार डाला
 वरण रखा जिंदा चरम मार डाला 

जहां शव को देखा चदाये सुमन
जहां मार्ग देखा कांटे बिछाए
चलन भी न सीखा चयन भी न जाना
मनन भी न सीखा नमन भी न जाना

रहे दुश्मनों को हँसते हमेशा
जो थे मित्र अपने बहुत ही रुलाये
हरण कर गए हम हनन कर गए हम
दफ़न कर गए हम दमन कर गए हम

कहा था के इक दिन गायेंगे मिलकर
न वो गीत सीखे न वो गीत गाये
       
                                      --गीत द्वारा सतीश अग्रवाल ,फरीदाबाद !

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

मत रुलाने की बातें करो मुस्कराने की बातें करो

मत रुलाने की बातें करो
मुस्कराने की बातें करो 

झुक गया सर बहुत झुक गया
सर उठाने की बातें करो

वक्त जैसा भी था कट गया
भूल जाने की बातें करो
आग अपनी हो या गैर की
बस बुझाने की बातें करो

गीत जब गा रहा हो 'सतीश'
गुनगुनाने की बातें करो

                           --सतीश अग्रवाल फरीदाबाद !

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

छोड़कर गाँव जब वो शहर को चला--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल

छोड़कर गाँव जब वो शहर को चला
खेत का एक टुकड़ा बुलाने लगा
जब पुजारी ही चला मंदिर छोड़कर
एक पत्थर भी आँसू बहाने लगा

भैय्या बीमार है भौजी लाचार है
एक खुशी घर में आने को तैयार है
जितने भेजे थे पैसे खतम हो गए
पत्र में जो लिखा था रुलाने लगा

हमने माना के तुम एक अफसर बने
जिसने तुमको बनाया वो खंडहर बने
जब महल की दिवारों ने धोखा दिया
झोंपड़ी का वो बचपन सताने लगा

आज लौटा तो देखा गया सब बदल
पेड़ पीपल न पाया गया वो मचल
गाँव अपना ही अपनों ने गुम कर दिया
ऐसा बदला के नक्शा डराने लगा         !!
                                            --सतीश अग्रवाल
(यह गीत एक बहुत अच्छे गीतकार सतीश अग्रवाल ने मुझे एस.एम.एस के माध्यम से फरीदाबाद से भेजा है ! सतीश अग्रवाल वह गीतकार है जिनके गीतों की गूँज ने एक समय में शिमला की वादीयों में तहलका मचा दिया था )

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

मैं अमन उपासक हूँ मेरे अधरों पर वंदन रहने दो--गीत-द्वारा एल.आर झींगटा

मैं घायल मन को मरहम हूँ
मैं तपते तन को शबनम हूँ
मैं सुमन सुवासित सरगम हूँ
नित नव उत्पीडन रहने दो !

जब धरती रक्तिम होती है,
जब माँ की ममता रोती है,
वो वेला अंतिम होती है
ये रक्त निमज्जन रहने दो !
क्योँ भटके हो तुम सत् पथ से
,क्यूँ ऐंठे हो तुम उन्मत से,
जो मात्रिचरण में कल नत थे
वो शीश नमन को रहने दो !

ये चौथी की दुल्हन का चेहरा
चित चुम्बी चुनरी और चूडा,
हर पोर पिपासा का पहरा
ये मांग सुहागन रहने दो !
मैं हिंसा का अवतार नहीं
मैं सत्ता या अधिकार नहीं,
मैं मानवता की मलयानिल
चहूँ ओर चिरंतन रहने दो !

तुम अपने गीतों के जलसे,
धो डालो धब्बे छल बल के
महकाओ सपने उज्जवल से
मन्त्रों का मंथन रहने दो !

मत उलझो वाद विवादों में
उत्कर्षविहीन विषादों में
हे 'निशात' ऋचा संवादों में
सब सत्य सनातन रहने दो !!
                                      --एल.आर. झींगटा !