शुक्रवार, 29 जून 2012


मेरी मोहब्बत  को समझ लेना, कहीं ना तमशा बना देना..
मैं घुंगरू बांध के नाचूँगा,तू बस महफ़िल सजा देना,
मैं तेरी आंख मैं रहता हूँ,तुझे एक बात ही कहता हूँ..
खारा पानी समझ के जूं ,मुझे.ना आँखों से बहा देना..
मेरे शहर के पत्थरों से ,तो हूँ बाकिफ में बहुत अच्छा,
बुला के शहर बेगाने में ,कहीं ना पत्थर बरस्बा देना..
लिखा तकदीर ए आशिक में,सच है यूँ चोट खाना भी.
मेहरबानी जो तेरी हो तो .तू बस मरहम लगा देना...
जमाना झूठ कहता है के,तू पत्थर दिल का मालिक है..
मेरा विश्वास जे पक्का है,बस कहीं तू ना झुटला देना..
तेरी हर बात पे सहमत हूँ.तेरी उदासी तेरी राहतों में शामिल हूँ.
बांध के पट्टी तू आँखों पे , निशाना अपना भी आजमा लेना.
अपने घर की छत के तारों से,जिकर करना तू बस इतना..
कहंगे सब वो तेरे बारे में ही,उन्हें बस नाम तू मेरा बता देना.
मेरी मोहब्बत को समझ लेना कहीं तमाशा ना बना देना.
मैं घुंगरू बांध के नाचूँगा,तू बस महफ़िल सजा देना,
लेखक:- अश्वनी भारद्वाज(९८१६६२७५५४)

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