बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

छोड़कर गाँव जब वो शहर को चला--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल

छोड़कर गाँव जब वो शहर को चला
खेत का एक टुकड़ा बुलाने लगा
जब पुजारी ही चला मंदिर छोड़कर
एक पत्थर भी आँसू बहाने लगा

भैय्या बीमार है भौजी लाचार है
एक खुशी घर में आने को तैयार है
जितने भेजे थे पैसे खतम हो गए
पत्र में जो लिखा था रुलाने लगा

हमने माना के तुम एक अफसर बने
जिसने तुमको बनाया वो खंडहर बने
जब महल की दिवारों ने धोखा दिया
झोंपड़ी का वो बचपन सताने लगा

आज लौटा तो देखा गया सब बदल
पेड़ पीपल न पाया गया वो मचल
गाँव अपना ही अपनों ने गुम कर दिया
ऐसा बदला के नक्शा डराने लगा         !!
                                            --सतीश अग्रवाल
(यह गीत एक बहुत अच्छे गीतकार सतीश अग्रवाल ने मुझे एस.एम.एस के माध्यम से फरीदाबाद से भेजा है ! सतीश अग्रवाल वह गीतकार है जिनके गीतों की गूँज ने एक समय में शिमला की वादीयों में तहलका मचा दिया था )

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