शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

कभी हम गिरते गए कभी सँभलते गए--गज़ल

कभी हम गिरते गए कभी सँभलते गए
रास्ते हयात खुद यों फ़िर संवरते गए

पशेमां भी रहे हैरां भी हम रहे
दिन जिन्दगी के यों मिले जुले गुजरते गए

कभी अपनों कभी गैरों के भी रहे
दिल साफ़ हम थे तो अच्छे दिन निकलते गए

खुद ही हदें जो थीं कभी तय की हमने
बाकायदा उन तयशुदा हदों पे हम तो चलते गए

नाकाम और काबिल हम न ये जाने
दुआ से उस खुदा की रास्ते मिलते गए         !!
                                                                        --अश्विनी रमेश

(आज ही यह गज़ल मैंने फेसबुक नोट के माध्यम से फेसबुक पर भी इससे पहले प्रकाशित की है--अश्विनी रमेश )