शुक्रवार, 16 मार्च 2012

एक सूरज से वो अबर में छुप गये--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल

एक सूरज से वो अबर में छुप गये
मैं अंजुलि में लिये जल खड़ा रह गया
जैसे आँसू निकलकर कोई आँख से
ओस की तरह मुख पे पड़ा रह गया

जाने किसने है तोड़े ये खिलते सुमन
तितलियाँ चुपके रोती हैं उद्यान में
सूख जाता तो महसूस होता नहीं
वो हरा घाव था जो हरा रह गया

साथ दे न कोई तो अकेले चलो
राह में छोड़ दे तो अकेले चलो
संग पक्षी के उड़ने की चाहत में मैं
इस धरा पर गिरा था गिरा रह गया

ये है तेरा शहर वो मेरा गाँव
है इस तरफ धूप है उस तरफ छांव
है कैसे टुकड़ों में हिरदय को बांटे कोई
कितना सहमा मैं कितना डरा रह गया !!

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