मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

कई मोड़ जीवन में ऐसे भी आये वही घर उजाड़े जो थे कभी बसाये

कई मोड़ जीवन में ऐसे भी आये
वही घर उजाड़े जो थे कभी बसाये
धरम रखा जिंदा करम मार डाला
 वरण रखा जिंदा चरम मार डाला 

जहां शव को देखा चदाये सुमन
जहां मार्ग देखा कांटे बिछाए
चलन भी न सीखा चयन भी न जाना
मनन भी न सीखा नमन भी न जाना

रहे दुश्मनों को हँसते हमेशा
जो थे मित्र अपने बहुत ही रुलाये
हरण कर गए हम हनन कर गए हम
दफ़न कर गए हम दमन कर गए हम

कहा था के इक दिन गायेंगे मिलकर
न वो गीत सीखे न वो गीत गाये
       
                                      --गीत द्वारा सतीश अग्रवाल ,फरीदाबाद !

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