मैं तेरी आँख में रहता हूँ ,बहाना सोच कर मुझको ,
गिरे इक्क बार जो आँखों से, तो बो मिटटी में मिल जाएँ.
मैं प्यार का रिश्ता नाज़ुक सा ,निभाना सोच कर मुझको ,
इतनी राह न लम्बी हो,के फूल कबर पे खिल जाएँ,
लेखनी:अश्वनी भरद्वाज
गिरे इक्क बार जो आँखों से, तो बो मिटटी में मिल जाएँ.
मैं प्यार का रिश्ता नाज़ुक सा ,निभाना सोच कर मुझको ,
इतनी राह न लम्बी हो,के फूल कबर पे खिल जाएँ,
लेखनी:अश्वनी भरद्वाज
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