सोमवार, 25 नवंबर 2013


हर शख्स खुद को क्या दिखाना चाहता है

आखिर वजूद अपना क्यों बताना चाहता है !

 

 सच ने ही बख्शा है किसी शख्स को वजूद

 दूसरों को फिर वोह क्या जताना चाहता है !

 

जिस खुदा की बदोलत सांसे ले रहा है वो

उसी खुदा को वोह क्या आजमाना चाहता है !

 

कुदरत की तरह  सादा ज़िंदगी जीता है जो

ज़माना उसको फिर क्यों ठुकराना चाहता है !

 

जमाने की क्यों करते हो’ रमेश’ तुम परवाह

 खुदा तो है जो तुम्हे अच्छा बनाना चाहता है !!

                                         © --अश्विनी रमेश (इस ग़ज़ल की रचना मेरे द्वारा आज दिनांक 24 नवम्बर ,2013 की गयी )

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

उदासी में कुछ भी नहीं सुहाता है


उदासी में कुछ भी नहीं सुहाता है

मंजर दिलकश भी नहीं लुभाता है !!

 

बैचेनियाँ जब इस कदर घेरतीं हैं

मज़ा सा ज़िंदगी का नहीं आता है !!

 

इन्सान तो इन्सान होता है आखिर

कैसे कहें वो तो नहीं घब्रराता है !!

 

असल में ज़िन्दगी इम्तिहा होती है

हर कोइ अपने तरीके से निभाता है

 

जब वक्त तेवर अपने दिखाता है

इन्सान तब आखिर सहम जाता है !!

                                   ©--अश्विनी रमेश (इस ग़ज़ल की रचना मेरे द्वारा 24/10/2013 को की गयी –)अश्विनी रमेश

बुधवार, 28 अगस्त 2013

इस ब्लॉग पर लेखक एवं पाठक के रूप में आपका हार्दिक स्वागत है  !अतः : आप सहर्ष इस ग्रुप की सदस्यता  ग्रहण कर सकते हैं --अश्विनी रमेश !



बुधवार, 22 अगस्त 2012

सुबीर संवाद सेवा --

सुबीर संवाद सेवा--हिदी जगत के लोकप्रिय उक्त ब्लॉग पर ईद के अवसर पर आयोजित मुशायरे में मेरी गज़ल भी पढें ! ब्लॉग लिंक पर क्लिक करें !

शुक्रवार, 29 जून 2012


मेरी मोहब्बत  को समझ लेना, कहीं ना तमशा बना देना..
मैं घुंगरू बांध के नाचूँगा,तू बस महफ़िल सजा देना,
मैं तेरी आंख मैं रहता हूँ,तुझे एक बात ही कहता हूँ..
खारा पानी समझ के जूं ,मुझे.ना आँखों से बहा देना..
मेरे शहर के पत्थरों से ,तो हूँ बाकिफ में बहुत अच्छा,
बुला के शहर बेगाने में ,कहीं ना पत्थर बरस्बा देना..
लिखा तकदीर ए आशिक में,सच है यूँ चोट खाना भी.
मेहरबानी जो तेरी हो तो .तू बस मरहम लगा देना...
जमाना झूठ कहता है के,तू पत्थर दिल का मालिक है..
मेरा विश्वास जे पक्का है,बस कहीं तू ना झुटला देना..
तेरी हर बात पे सहमत हूँ.तेरी उदासी तेरी राहतों में शामिल हूँ.
बांध के पट्टी तू आँखों पे , निशाना अपना भी आजमा लेना.
अपने घर की छत के तारों से,जिकर करना तू बस इतना..
कहंगे सब वो तेरे बारे में ही,उन्हें बस नाम तू मेरा बता देना.
मेरी मोहब्बत को समझ लेना कहीं तमाशा ना बना देना.
मैं घुंगरू बांध के नाचूँगा,तू बस महफ़िल सजा देना,
लेखक:- अश्वनी भारद्वाज(९८१६६२७५५४)

सोमवार, 11 जून 2012

तेरे खुआब

मुझे भी तेरे खुआब  देखने  का शौंक  है ..
कहदो न अपनी यादों से मुझे सोने दिया करें ..लेखक अश्वनी भारद्वाज 

शहर

जब भी नम नम सी हवाएं चलें तेरे शहर में ,
समझ लेना के आज कल अश्वनी तेरे ही शहर मैं है. 
:-लेखक अश्वनी भरद्वाज

वक़्त

इससे बुरी क्या होगी गरीब की दास्ताँ-ए-इश्क 
मुश्किल से मिला है वक़्त मुलाक़ात का और जेब मेरी खाली है. 
लेखक :-अश्वनी भरद्वाज

मैं प्यार का रिश्ता नाज़ुक सा

मैं तेरी आँख में रहता हूँ ,बहाना सोच कर मुझको ,
गिरे इक्क बार जो आँखों से, तो बो मिटटी में मिल जाएँ.
मैं प्यार का रिश्ता नाज़ुक सा ,निभाना सोच कर मुझको ,
इतनी राह न लम्बी हो,के फूल कबर पे खिल जाएँ, 
लेखनी:अश्वनी भरद्वाज

बर्बादी

बदनाम न हो जाये तेरा नाम मैं चुप ही रहता हूँ ,
यूँ तो लोग रोज मुझसे मेरी बर्बादी का सबब पूछते हैं. 
लेखक:अश्वनी भारद्वाज 

दीवानगी

तेरे शहर की हर दिवार को पता है मेरी दीवानगी का..
अक्सर लग्ग के गले मैंने उनके आंसू बहाए हैं...लिखारी:अश्वनी भारद्वाज

हालात

उसे लगा के छोड़ जाऊंगी मैं तो उजड़ जायेगा अश्वनी ,
मुझे लगता है के तेरे जाने से हालात मेरे बेहतर हैं ..लेखनी अश्वनी भारद्वाज

Gunah...

मैंने मेरे ही लोगों से गुनाह जे एक जरुर किया है...
लेके नाम किसी और का खुद को मशहूर किया है..Ashwani Bhardwaj

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

कभी हम गिरते गए कभी सँभलते गए--गज़ल

कभी हम गिरते गए कभी सँभलते गए
रास्ते हयात खुद यों फ़िर संवरते गए

पशेमां भी रहे हैरां भी हम रहे
दिन जिन्दगी के यों मिले जुले गुजरते गए

कभी अपनों कभी गैरों के भी रहे
दिल साफ़ हम थे तो अच्छे दिन निकलते गए

खुद ही हदें जो थीं कभी तय की हमने
बाकायदा उन तयशुदा हदों पे हम तो चलते गए

नाकाम और काबिल हम न ये जाने
दुआ से उस खुदा की रास्ते मिलते गए         !!
                                                                        --अश्विनी रमेश

(आज ही यह गज़ल मैंने फेसबुक नोट के माध्यम से फेसबुक पर भी इससे पहले प्रकाशित की है--अश्विनी रमेश )

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

जब तुम पर उदासी छाएगी फ़िर याद कर लेना--गज़ल

जब तुम पर उदासी छाएगी फ़िर याद कर लेना
शेरों से हमारे फ़िर कभी दिल शाद कर लेना

मन की तितलियाँ जब फड़फड़ातीं जाएंगीं
यादों के घरोंदे में कभी आबाद कर लेना

साया भी हमारा साथ तेरा इस कदर देगा
दिलकश ये अह्सासे रूह बरसों भी बाद कर लेना

अहसासे रूह एक रोशनी में तुम हमें देखना
कोई नाम ना आकार दे आज़ाद कर लेना

पानी में हवा में आग में हर जगह हम ही हैं
जब चाहे जहाँ चाहे हमें तुम याद कर लेना !!

                                                                       --अश्विनी रमेश !

(यह गज़ल आज ही मैंने फेसबुक नोट के माध्यम से पहले फेसबुक पर सबसे पहले प्रकाशित की--अश्विनी रमेश )

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

एक सूरज से वो अबर में छुप गये--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल

एक सूरज से वो अबर में छुप गये
मैं अंजुलि में लिये जल खड़ा रह गया
जैसे आँसू निकलकर कोई आँख से
ओस की तरह मुख पे पड़ा रह गया

जाने किसने है तोड़े ये खिलते सुमन
तितलियाँ चुपके रोती हैं उद्यान में
सूख जाता तो महसूस होता नहीं
वो हरा घाव था जो हरा रह गया

साथ दे न कोई तो अकेले चलो
राह में छोड़ दे तो अकेले चलो
संग पक्षी के उड़ने की चाहत में मैं
इस धरा पर गिरा था गिरा रह गया

ये है तेरा शहर वो मेरा गाँव
है इस तरफ धूप है उस तरफ छांव
है कैसे टुकड़ों में हिरदय को बांटे कोई
कितना सहमा मैं कितना डरा रह गया !!

गुरुवार, 8 मार्च 2012

ओ पवन उनकी हथेली की छुअन लाना कभी--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल ,फरीदाबाद

                                                                 

ओ पवन उनकी हथेली की छुअन लाना कभी
आये जब होली तो मेरे मुख पे मल जाना कभी

हो सुपरिचत केश की मधु गंध से तुम भी पवन
एक मुट्ठी भर के अपने साथ ले आना कभी

टिमटिमाये बिन दीया जब जल रहा हो सामने
एक झोंके से मेरी पलकों को ढक जाना कभी

नीर नयनों से बहाकर हमने संचित कर लिये
भेद सावन बीत जाने का बता जाना कभी

करवटों से बिस्तरे पर गीत हमने लिख दिया
वो जो आँगन में मिले तो गुनगुना जाना कभी !!