फासले तो प्यार की यादें भुला देते हैं
लोग भी तो प्यार की क्या कम सजा देते हैं
प्यार गर कोई करे तो फ़िर खुदा से ही हो
फ़िर नहीं कोई कहाँ हस्ती मिटा देते हैं
ठोकरें खायी न हों जिसने कभी भी तो गर
वक्त के हालत उसको तो सिखा देते हैं
जब भलाई और दरिया दिल चले होकर हम
लोग ऐसे कौन किसको कब सिला देते हैं
जो मगर हमने किया वो तो फ़रज़ है समझा
काम हमसे वो खुदा ही तो करा देते हैं !!
(यह गज़ल मैंने 19/12/2011 को पहली बार “हिमधारा” साईट पर प्रकाशित की थी और जिसका लिंक इस ब्लॉग पर दिया था,पाठकों की सुविधा हेतु पूरी गज़ल यहाँ भी दे रहा हूँ—अश्विनी रमेश )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें