कई मोड़ जीवन में ऐसे भी आये
वही घर उजाड़े जो थे कभी बसाये
धरम रखा जिंदा करम मार डाला
वरण रखा जिंदा चरम मार डाला
जहां शव को देखा चदाये सुमन
जहां मार्ग देखा कांटे बिछाए
चलन भी न सीखा चयन भी न जाना
मनन भी न सीखा नमन भी न जाना
रहे दुश्मनों को हँसते हमेशा
जो थे मित्र अपने बहुत ही रुलाये
हरण कर गए हम हनन कर गए हम
दफ़न कर गए हम दमन कर गए हम
कहा था के इक दिन गायेंगे मिलकर
न वो गीत सीखे न वो गीत गाये
--गीत द्वारा सतीश अग्रवाल ,फरीदाबाद !
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