मैं घायल मन को मरहम हूँ
मैं तपते तन को शबनम हूँ
मैं सुमन सुवासित सरगम हूँ
नित नव उत्पीडन रहने दो !
जब धरती रक्तिम होती है,
जब माँ की ममता रोती है,
वो वेला अंतिम होती है
ये रक्त निमज्जन रहने दो !
क्योँ भटके हो तुम सत् पथ से
,क्यूँ ऐंठे हो तुम उन्मत से,
जो मात्रिचरण में कल नत थे
वो शीश नमन को रहने दो !
ये चौथी की दुल्हन का चेहरा
चित चुम्बी चुनरी और चूडा,
हर पोर पिपासा का पहरा
ये मांग सुहागन रहने दो !
मैं हिंसा का अवतार नहीं
मैं सत्ता या अधिकार नहीं,
मैं मानवता की मलयानिल
चहूँ ओर चिरंतन रहने दो !
तुम अपने गीतों के जलसे,
धो डालो धब्बे छल बल के
महकाओ सपने उज्जवल से
मन्त्रों का मंथन रहने दो !
मत उलझो वाद विवादों में
उत्कर्षविहीन विषादों में
हे 'निशात' ऋचा संवादों में
सब सत्य सनातन रहने दो !!
--एल.आर. झींगटा !
मैं तपते तन को शबनम हूँ
मैं सुमन सुवासित सरगम हूँ
नित नव उत्पीडन रहने दो !
जब धरती रक्तिम होती है,
जब माँ की ममता रोती है,
वो वेला अंतिम होती है
ये रक्त निमज्जन रहने दो !
क्योँ भटके हो तुम सत् पथ से
,क्यूँ ऐंठे हो तुम उन्मत से,
जो मात्रिचरण में कल नत थे
वो शीश नमन को रहने दो !
ये चौथी की दुल्हन का चेहरा
चित चुम्बी चुनरी और चूडा,
हर पोर पिपासा का पहरा
ये मांग सुहागन रहने दो !
मैं हिंसा का अवतार नहीं
मैं सत्ता या अधिकार नहीं,
मैं मानवता की मलयानिल
चहूँ ओर चिरंतन रहने दो !
तुम अपने गीतों के जलसे,
धो डालो धब्बे छल बल के
महकाओ सपने उज्जवल से
मन्त्रों का मंथन रहने दो !
मत उलझो वाद विवादों में
उत्कर्षविहीन विषादों में
हे 'निशात' ऋचा संवादों में
सब सत्य सनातन रहने दो !!
--एल.आर. झींगटा !
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